जब 30 दिन बाद श्रीनगर में खुली लैंडलाइन
अब अगर सरकार के वक़ील सुप्रीम कोर्ट (जहां इस फ़ैसले को चुनौती दी गई
है) को ये समझा लेते हैं कि उसने क़ानून का पालन किया है, तो भी ये भारतीय
लोकतंत्र की बुनियाद को ही चुनौती देने वाला फ़ैसला है. इसे अगर हम सैन्य प्रशासन कह रहे हैं, तो ये बिल्कुल ग़लत नहीं है.
इस फ़ैसले का आर्थिक असर साफ़ दिख रहा है. कश्मीर की लाइफ़लाइन कहा जाने वाला पर्यटन उद्योग चौपट हो गया है. कई दशकों की भारत की सरकारों की कश्मीर के हालात दुनिया को सामान्य दिखाने की कोशिशें बेकार चली गई हैं. अब विदेशी सरकारें अपने नागरिकों को सलाह दे रही हैं कि वो कश्मीर न जाएं. जबकि पहले की सरकारें दुनिया के देशों को ये भरोसा देती थीं कि उनके नागरिक घूमने के लिए कश्मीर आ सकते हैं, क्योंकि वहां के हालात सामान्य हैं. अब ये सारी कोशिशें बेकार हो गई हैं.
सबसे विचित्र बात तो ये है कि 2017 में कश्मीर के दौरे पर गए प्रधानमंत्री ने कश्मीर के युवाओं (जहां बेरोज़गारी की दर 24.6 प्रतिशत है, जो भारत के अन्य राज्यों से दोगुनी है) से अपील की थी कि वो आतंकवाद और पर्यटन में से एक चुनाव करें.
पर्यटन ने बहुत से बेरोज़गार युवाओं को काम दिया होता. लेकिन, अब सैलानी कश्मीर आ नहीं रहे हैं. और जम्मू-कश्मीर में पाबंदियों की वजह से वहां मौजूद लोगों को बाहर निकाल दिया गया है.
आज कई देश अपने नागरिकों को फिर से कश्मीर न जाने की एडवाइज़री जारी कर रहे हैं. इस वजह से कश्मीर की हाउसबोट सूनी हैं और कारोबार ठप है. हस्तशिल्प उद्योग से जुड़े और क़ालीन बनाने वाले कश्मीर के महान कलाकार बर्बाद हो गए हैं.
भारत की धर्मनिरपेक्षता की बड़ी मिसाल अमरनाथ यात्रा, जिसके तहत हर साल हज़ारों हिंदू यात्री उत्तरी कश्मीर में स्थित गुफ़ा की तीर्थयात्रा पर जाते हैं, उसे भी बीच में ही रोक दिया गया.
सबसे चिंता की बात तो ये है कि लोकतांत्रिक रूप से चुने गए नेताओं को नज़र बंद कर दिया गया. ऐसे में सरकार ने अलोकतांत्रिक ताक़तों के लिए जगह ख़ुद ही बना दी है.
जम्मू-कश्मीर को मिला विशेष दर्जा कश्मीर के बहुत से नेताओं को मुख्यधारा की राजनीति करने का मौक़ा और बहाना देता था. वो भारत के साथ रहकर राज्य की स्वायत्तता की वक़ालत करते थे.
लेकिन, अब ये आवरण भी उनसे छीन लिया गया है. इसलिए अब राज्य के नेता अप्रासंगिक साबित हो गए हैं और अब उनके पास चरमपंथ को रोकने की ताक़त नहीं बची है.
भारत सरकार का दावा है कि सरकार आतंकवाद के ख़िलाफ़ जंग जीत रही है. लेकिन, अब इस क़दम से आतंकवाद को नई ज़िंदगी मिल सकती है. अब आतंकवादी इस नई नाइंसाफ़ी का हवाला दे कर लोगों को जोड़ सकते हैं.
इससे कुछ भटके हुए युवा चरमपंथी संगठनों में शामिल हो सकते हैं. इससे भारत के बहादुर और चुनौती झेल रहे सैनिकों को और नुक़सान उठाना पड़ सकता है.
हालांकि अब तक तो भारत सरकार के इस क़दम की तारीफ़ हुई है. लेकिन अभी ये कहना जल्दबाज़ी होगी कि जब तमाम पाबंदियां उठा ली जाएंगी, तब क्या होगा. क्योंकि कभी न कभी तो एहतियाती क़दम पीछे खींचने ही होंगे.
इस फ़ैसले का आर्थिक असर साफ़ दिख रहा है. कश्मीर की लाइफ़लाइन कहा जाने वाला पर्यटन उद्योग चौपट हो गया है. कई दशकों की भारत की सरकारों की कश्मीर के हालात दुनिया को सामान्य दिखाने की कोशिशें बेकार चली गई हैं. अब विदेशी सरकारें अपने नागरिकों को सलाह दे रही हैं कि वो कश्मीर न जाएं. जबकि पहले की सरकारें दुनिया के देशों को ये भरोसा देती थीं कि उनके नागरिक घूमने के लिए कश्मीर आ सकते हैं, क्योंकि वहां के हालात सामान्य हैं. अब ये सारी कोशिशें बेकार हो गई हैं.
सबसे विचित्र बात तो ये है कि 2017 में कश्मीर के दौरे पर गए प्रधानमंत्री ने कश्मीर के युवाओं (जहां बेरोज़गारी की दर 24.6 प्रतिशत है, जो भारत के अन्य राज्यों से दोगुनी है) से अपील की थी कि वो आतंकवाद और पर्यटन में से एक चुनाव करें.
पर्यटन ने बहुत से बेरोज़गार युवाओं को काम दिया होता. लेकिन, अब सैलानी कश्मीर आ नहीं रहे हैं. और जम्मू-कश्मीर में पाबंदियों की वजह से वहां मौजूद लोगों को बाहर निकाल दिया गया है.
आज कई देश अपने नागरिकों को फिर से कश्मीर न जाने की एडवाइज़री जारी कर रहे हैं. इस वजह से कश्मीर की हाउसबोट सूनी हैं और कारोबार ठप है. हस्तशिल्प उद्योग से जुड़े और क़ालीन बनाने वाले कश्मीर के महान कलाकार बर्बाद हो गए हैं.
भारत की धर्मनिरपेक्षता की बड़ी मिसाल अमरनाथ यात्रा, जिसके तहत हर साल हज़ारों हिंदू यात्री उत्तरी कश्मीर में स्थित गुफ़ा की तीर्थयात्रा पर जाते हैं, उसे भी बीच में ही रोक दिया गया.
सबसे चिंता की बात तो ये है कि लोकतांत्रिक रूप से चुने गए नेताओं को नज़र बंद कर दिया गया. ऐसे में सरकार ने अलोकतांत्रिक ताक़तों के लिए जगह ख़ुद ही बना दी है.
जम्मू-कश्मीर को मिला विशेष दर्जा कश्मीर के बहुत से नेताओं को मुख्यधारा की राजनीति करने का मौक़ा और बहाना देता था. वो भारत के साथ रहकर राज्य की स्वायत्तता की वक़ालत करते थे.
लेकिन, अब ये आवरण भी उनसे छीन लिया गया है. इसलिए अब राज्य के नेता अप्रासंगिक साबित हो गए हैं और अब उनके पास चरमपंथ को रोकने की ताक़त नहीं बची है.
भारत सरकार का दावा है कि सरकार आतंकवाद के ख़िलाफ़ जंग जीत रही है. लेकिन, अब इस क़दम से आतंकवाद को नई ज़िंदगी मिल सकती है. अब आतंकवादी इस नई नाइंसाफ़ी का हवाला दे कर लोगों को जोड़ सकते हैं.
इससे कुछ भटके हुए युवा चरमपंथी संगठनों में शामिल हो सकते हैं. इससे भारत के बहादुर और चुनौती झेल रहे सैनिकों को और नुक़सान उठाना पड़ सकता है.
हालांकि अब तक तो भारत सरकार के इस क़दम की तारीफ़ हुई है. लेकिन अभी ये कहना जल्दबाज़ी होगी कि जब तमाम पाबंदियां उठा ली जाएंगी, तब क्या होगा. क्योंकि कभी न कभी तो एहतियाती क़दम पीछे खींचने ही होंगे.
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