19 को हिमाचल में मतदान होना था और केदारनाथ में मोदी ने हिमाचली टोपी पहनी हुई थी
वरिष्ठ पत्रकार राधिका रामासेशन बताती हैं कि पीएम मोदी की केदारनाथ यात्रा भी कुछ लोग सरोगेट कैंपेनिंग कह रहे हैं. वह बताती हैं कि पीएम के
कहीं जाने पर वैसे तो कोई रोक नहीं है, मगर यह मामला नैतिकता और शिष्टाचार
से जुड़ा हुआ है.
वह कहती हैं, "तकनीकी और क़ानूनी हिसाब से देखें तो मुझे नहीं लगता कि उन्होंने कुछ ग़लत किया है. मगर राजनीति और चुनाव में शिष्टाचार का भी सवाल आता है. भले ही वह मंदिर जाएं, पूजा करें मगर साथ में जो न्यूज़ एजेंसी को ले जाने के आरोप लग रहे हैं और उनकी गतिविधियों की पल-पल की जानकारी सभी तक पहुंच रही है, सवाल उस पर उठ रहे हैं."
राधिका मानती हैं कि इसका प्रभाव उन जगहों पर ज़ूरूर हुआ होगा, जहां पर मतदान होने वाला था. उन्होंने कहा, "उत्तराखंड में बेशक मतदान ख़त्म हो गया था मगर बग़ल के राज्य हिमाचल, जिसे देवभूमि कहते हैं, वहां मतदान होना था. वाराणसी में भी मतदान होना था जहां से मोदी चुनाव लड़ रहे हैं. साथ ही यूपी, बिहार वगै़रह, जहां आस्था और धर्म की अहमियत है, वहां कुछ तो असर हुआ होगा मतदाताओं पर. वैसे तो प्रधानमंत्री ने कोई ग़लत काम नहीं किया और उन्होंने कहा भी कि वह चुनाव आयोग को सूचित करके आए हैं मगर यहां मामला नैतिकता का है."
वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की केदारनाथ यात्रा को अलग नज़रिये से देखते हैं. उनका मानना है कि कि चुनाव प्रचार इसका छोटा सा अंश हो सकता है, मगर यह उनकी निजी आस्था का सवाल है.
वह कहते हैं कि पीएम रहते हुए मोदी चौथी बार केदारनाथ गए हैं और यह उनकी आस्था का निजी पक्ष है. हालांकि उनका मानना है कि वह इसे चुनाव प्रचार की दृष्टि से किए गए काम के बजाय दीर्घकालिक रणनीति के तहत किया गया काम ज़्यादा मानते हैं.
प्रदीप सिंह कहते हैं, "मेरा मानना है कि जैसे 2014 में जीत हासिल करने के बाद मोदी ने अपने शपथ ग्रहण में पड़ोसी देशों के राष्ट्राध्यक्षों को बुलाया था, वह 2019 के चुनाव प्रचार की शुरुआत थी. मोदी बहुत आगे का प्लान करके चलते हैं. उनका केदारनाथ जाना 2024 को ध्यान में रखते हुए उठाया गया क़दम है."
अपने तर्क के समर्थन में प्रदीप सिंह कहते हैं, "केदारनाथ वाली उनकी इमेज लोगों के दिमाग़ में रहने वाली है. अब जब कभी वह भारतीय संस्कृति, हिंदू धर्म और धार्मिक स्थानों को लेकर बात करेंगे तो लोगों के दिमाग़ में सीधे उनकी यही इमेज आएगी. मोदी जानते हैं कि किस छवि का इस्तेमाल कैसे करना है."
इस तरह परोक्ष प्रचार के आरोप नरेंद्र मोदी पर ही नहीं, अन्य नेताओं पर भी उठते रहे हैं. जैसे कि जिस समय यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर चुनाव आयोग ने प्रचार करने की पाबंदी लगाई थी, वह हनुमान मंदिर पहुंचे थे और मीडिया ने इसे भी कवर किया था.
तो क्या ये सवाल मीडिया कवरेज के कारण उठ रहे हैं?
वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश मोदी की केदारनाथ यात्रा पर विपक्ष द्वारा उठाए जा रहे सवालों को वाजिब तो मानते हैं मगर इस पूरे मामले को लेकर एक अहम सवाल उठाते हैं.
वह कहते हैं कि बात सिर्फ़ इस घटना की नहीं है, अलग-अलग चरणों में चुनाव होने के कारण जब एक जगह प्रचार थमता है तो अन्य जगहों पर किए जा रहे प्रचार की पहुंच सभी तक हो जाती है.
उर्मिलेश कहते है, "प्रधानमंत्री क्या, किसी को भी देश के संविधान के हिसाब से उपासना की स्वतंत्रता है. मगर सवाल इसलिए उठा कि प्रधानमंत्री 59 सीटों पर मतदान से पहले केदारनाथ गए. अगर वह अकेले जाते तो कोई सवाल न उठता. उनके साथ टीवी चैनल और चैनलों को फ़ीड मुहैया करवाने वाली एजेंसियां भी थीं. उन्होंने मोदी की गतिविधियों को कवर किया तो विपक्ष ने आरोप लगाया कि यह मतदाताओं पर असर डालने की कोशिश है. तो टीवी के कारण आप जाने-अनजाने राजनीतिक कारणों से पूजा और उपासना को इस्तेमाल तो कर ही रहे हैं."
इस तरह परोक्ष प्रचार के आरोप नरेंद्र मोदी पर ही नहीं, अन्य नेताओं पर भी उठते रहे हैं. जैसे कि जिस समय यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर चुनाव आयोग ने प्रचार करने की पाबंदी लगाई थी, वह हनुमान मंदिर पहुंचे थे और मीडिया ने इसे भी कवर किया था.
तो क्या ये सवाल मीडिया कवरेज के कारण उठ रहे हैं?
वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश मोदी की केदारनाथ यात्रा पर विपक्ष द्वारा उठाए जा रहे सवालों को वाजिब तो मानते हैं मगर इस पूरे मामले को लेकर एक अहम सवाल उठाते हैं.
वह कहते हैं कि बात सिर्फ़ इस घटना की नहीं है, अलग-अलग चरणों में चुनाव होने के कारण जब एक जगह प्रचार थमता है तो अन्य जगहों पर किए जा रहे प्रचार की पहुंच सभी तक हो जाती है.
उर्मिलेश कहते है, "प्रधानमंत्री क्या, किसी को भी देश के संविधान के हिसाब से उपासना की स्वतंत्रता है. मगर सवाल इसलिए उठा कि प्रधानमंत्री 59 सीटों पर मतदान से पहले केदारनाथ गए. अगर वह अकेले जाते तो कोई सवाल न उठता. उनके साथ टीवी चैनल और चैनलों को फ़ीड मुहैया करवाने वाली एजेंसियां भी थीं. उन्होंने मोदी की गतिविधियों को कवर किया तो विपक्ष ने आरोप लगाया कि यह मतदाताओं पर असर डालने की कोशिश है. तो टीवी के कारण आप जाने-अनजाने राजनीतिक कारणों से पूजा और उपासना को इस्तेमाल तो कर ही रहे हैं."
इस पूरे मामले को लेकर बहस का एक बिंदु यह भी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगर यह निजी यात्रा थी तो इसकी इस तरह से बड़े स्तर पर मीडिया कवरेज करवाने की ज़रूरत क्या थी.
राधिका रामासेशन कहती हैं कि वैसे तो सभी पार्टियों के नेता गुरुद्वारा, मंदिर, चर्च और मस्जिद जाते रहते हैं मगर यहां सवाल कवरेज को लेकर है.
वह कहती हैं, "जहां तक मुझे स्मरण है, इनसे पहले मनमोहन प्रधानमंत्री थे 10 साल तक. मुझे नहीं याद कि मनमोहन सिंह ने ऐसा कुछ किया चुनाव के बाद. धार्मिक स्थलों पर तो सभी पार्टियों के नेता जाते रहे हैं और किसी ने आपत्ति नहीं जताई. मगर सवाल उठे हैं कवरेज को लेकर. इसी को थोड़ा आपत्तिजनक कहा जा सकता है."
जैसे ही मोदी की केदारनाथ यात्रा पर सवाल उठे थे, सोशल मीडिया पर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तस्वीर सामने आई थी जिसमें वह वैष्णोदेवी गुफ़ा में प्रवेश करती नज़र आ रही हैं.
वह कहती हैं, "तकनीकी और क़ानूनी हिसाब से देखें तो मुझे नहीं लगता कि उन्होंने कुछ ग़लत किया है. मगर राजनीति और चुनाव में शिष्टाचार का भी सवाल आता है. भले ही वह मंदिर जाएं, पूजा करें मगर साथ में जो न्यूज़ एजेंसी को ले जाने के आरोप लग रहे हैं और उनकी गतिविधियों की पल-पल की जानकारी सभी तक पहुंच रही है, सवाल उस पर उठ रहे हैं."
राधिका मानती हैं कि इसका प्रभाव उन जगहों पर ज़ूरूर हुआ होगा, जहां पर मतदान होने वाला था. उन्होंने कहा, "उत्तराखंड में बेशक मतदान ख़त्म हो गया था मगर बग़ल के राज्य हिमाचल, जिसे देवभूमि कहते हैं, वहां मतदान होना था. वाराणसी में भी मतदान होना था जहां से मोदी चुनाव लड़ रहे हैं. साथ ही यूपी, बिहार वगै़रह, जहां आस्था और धर्म की अहमियत है, वहां कुछ तो असर हुआ होगा मतदाताओं पर. वैसे तो प्रधानमंत्री ने कोई ग़लत काम नहीं किया और उन्होंने कहा भी कि वह चुनाव आयोग को सूचित करके आए हैं मगर यहां मामला नैतिकता का है."
वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की केदारनाथ यात्रा को अलग नज़रिये से देखते हैं. उनका मानना है कि कि चुनाव प्रचार इसका छोटा सा अंश हो सकता है, मगर यह उनकी निजी आस्था का सवाल है.
वह कहते हैं कि पीएम रहते हुए मोदी चौथी बार केदारनाथ गए हैं और यह उनकी आस्था का निजी पक्ष है. हालांकि उनका मानना है कि वह इसे चुनाव प्रचार की दृष्टि से किए गए काम के बजाय दीर्घकालिक रणनीति के तहत किया गया काम ज़्यादा मानते हैं.
प्रदीप सिंह कहते हैं, "मेरा मानना है कि जैसे 2014 में जीत हासिल करने के बाद मोदी ने अपने शपथ ग्रहण में पड़ोसी देशों के राष्ट्राध्यक्षों को बुलाया था, वह 2019 के चुनाव प्रचार की शुरुआत थी. मोदी बहुत आगे का प्लान करके चलते हैं. उनका केदारनाथ जाना 2024 को ध्यान में रखते हुए उठाया गया क़दम है."
अपने तर्क के समर्थन में प्रदीप सिंह कहते हैं, "केदारनाथ वाली उनकी इमेज लोगों के दिमाग़ में रहने वाली है. अब जब कभी वह भारतीय संस्कृति, हिंदू धर्म और धार्मिक स्थानों को लेकर बात करेंगे तो लोगों के दिमाग़ में सीधे उनकी यही इमेज आएगी. मोदी जानते हैं कि किस छवि का इस्तेमाल कैसे करना है."
इस तरह परोक्ष प्रचार के आरोप नरेंद्र मोदी पर ही नहीं, अन्य नेताओं पर भी उठते रहे हैं. जैसे कि जिस समय यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर चुनाव आयोग ने प्रचार करने की पाबंदी लगाई थी, वह हनुमान मंदिर पहुंचे थे और मीडिया ने इसे भी कवर किया था.
तो क्या ये सवाल मीडिया कवरेज के कारण उठ रहे हैं?
वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश मोदी की केदारनाथ यात्रा पर विपक्ष द्वारा उठाए जा रहे सवालों को वाजिब तो मानते हैं मगर इस पूरे मामले को लेकर एक अहम सवाल उठाते हैं.
वह कहते हैं कि बात सिर्फ़ इस घटना की नहीं है, अलग-अलग चरणों में चुनाव होने के कारण जब एक जगह प्रचार थमता है तो अन्य जगहों पर किए जा रहे प्रचार की पहुंच सभी तक हो जाती है.
उर्मिलेश कहते है, "प्रधानमंत्री क्या, किसी को भी देश के संविधान के हिसाब से उपासना की स्वतंत्रता है. मगर सवाल इसलिए उठा कि प्रधानमंत्री 59 सीटों पर मतदान से पहले केदारनाथ गए. अगर वह अकेले जाते तो कोई सवाल न उठता. उनके साथ टीवी चैनल और चैनलों को फ़ीड मुहैया करवाने वाली एजेंसियां भी थीं. उन्होंने मोदी की गतिविधियों को कवर किया तो विपक्ष ने आरोप लगाया कि यह मतदाताओं पर असर डालने की कोशिश है. तो टीवी के कारण आप जाने-अनजाने राजनीतिक कारणों से पूजा और उपासना को इस्तेमाल तो कर ही रहे हैं."
इस तरह परोक्ष प्रचार के आरोप नरेंद्र मोदी पर ही नहीं, अन्य नेताओं पर भी उठते रहे हैं. जैसे कि जिस समय यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर चुनाव आयोग ने प्रचार करने की पाबंदी लगाई थी, वह हनुमान मंदिर पहुंचे थे और मीडिया ने इसे भी कवर किया था.
तो क्या ये सवाल मीडिया कवरेज के कारण उठ रहे हैं?
वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश मोदी की केदारनाथ यात्रा पर विपक्ष द्वारा उठाए जा रहे सवालों को वाजिब तो मानते हैं मगर इस पूरे मामले को लेकर एक अहम सवाल उठाते हैं.
वह कहते हैं कि बात सिर्फ़ इस घटना की नहीं है, अलग-अलग चरणों में चुनाव होने के कारण जब एक जगह प्रचार थमता है तो अन्य जगहों पर किए जा रहे प्रचार की पहुंच सभी तक हो जाती है.
उर्मिलेश कहते है, "प्रधानमंत्री क्या, किसी को भी देश के संविधान के हिसाब से उपासना की स्वतंत्रता है. मगर सवाल इसलिए उठा कि प्रधानमंत्री 59 सीटों पर मतदान से पहले केदारनाथ गए. अगर वह अकेले जाते तो कोई सवाल न उठता. उनके साथ टीवी चैनल और चैनलों को फ़ीड मुहैया करवाने वाली एजेंसियां भी थीं. उन्होंने मोदी की गतिविधियों को कवर किया तो विपक्ष ने आरोप लगाया कि यह मतदाताओं पर असर डालने की कोशिश है. तो टीवी के कारण आप जाने-अनजाने राजनीतिक कारणों से पूजा और उपासना को इस्तेमाल तो कर ही रहे हैं."
इस पूरे मामले को लेकर बहस का एक बिंदु यह भी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगर यह निजी यात्रा थी तो इसकी इस तरह से बड़े स्तर पर मीडिया कवरेज करवाने की ज़रूरत क्या थी.
राधिका रामासेशन कहती हैं कि वैसे तो सभी पार्टियों के नेता गुरुद्वारा, मंदिर, चर्च और मस्जिद जाते रहते हैं मगर यहां सवाल कवरेज को लेकर है.
वह कहती हैं, "जहां तक मुझे स्मरण है, इनसे पहले मनमोहन प्रधानमंत्री थे 10 साल तक. मुझे नहीं याद कि मनमोहन सिंह ने ऐसा कुछ किया चुनाव के बाद. धार्मिक स्थलों पर तो सभी पार्टियों के नेता जाते रहे हैं और किसी ने आपत्ति नहीं जताई. मगर सवाल उठे हैं कवरेज को लेकर. इसी को थोड़ा आपत्तिजनक कहा जा सकता है."
जैसे ही मोदी की केदारनाथ यात्रा पर सवाल उठे थे, सोशल मीडिया पर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तस्वीर सामने आई थी जिसमें वह वैष्णोदेवी गुफ़ा में प्रवेश करती नज़र आ रही हैं.
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